क्या पैरा कमांडों खाते हैं कांच ?

Glass Eating Rituals

सभी जीव-जंतु जीवित रहने के लिए अपने उदर की भूख पर आश्रित होते हैं । छोटे से छोटे और बड़े से बड़े जीवित प्राणी को खाने के लिए कुछ न कुछ चाइए होता है जिससे वह अपने शरीर की ताकत बनाए रखे और एक स्वस्थ जीवन के साथ सभी कार्य सफलतापूर्वक पूर्ण करे। कुछ प्राणी पेड़-पौधे खाते हैं तो कुछ मीट-मछली । परंतु क्या कभी आपने सुना है किसीको कांच खाते हुए? जी आइए जानते हैं कोन हैं वो लोग जो कांच खाते हैं।

कोन होते हैं पैरा कमांडोज?

भारतीय पैरा कमांडों या पैरा (एस एफ) कमांडों या पैरा (स्पेशल फोर्स) भारतीय सेना के पैराशूट रेजिमेंट की स्पेशल फोर्स यूनिट है जो विभिन्न मुश्किल कार्य जैसे गैर परंपरागत हमले , आतंकवाद विरोधी अभियान, विदेश में आंतरिक सुरक्षा ,दुश्मनों को मार गिराना आदि को अंजाम देते हैं।
पैरा ट्रूपर ३ महीने के प्रशिक्षण के बाद ६ महीने के पैरा कमांडों स्पेशल फोर्स प्रशिक्षण के साथ कुल ९ महीने के कठिन प्रशिक्षण अवधि से गुजरते हैं जिसमें उनको कई चुनौतीपूर्ण स्थिति में रहना होता है और उनको पार करना होता है जैसे बिना खाए और पिए ३६ घंटे जागकर बिताना । इनके कठिन प्रशिक्षण के पीछे का कारण यह है की इन युवाओं को शारीरिक ,मानसिक, भावनात्मक आदि हर तौर पर इतना मजबूत बनाया जाता है की यह किसी भी परिस्थिति में दुश्मन का सामना करने को उसको मार गिराने में थोड़ा भी घबराए नहीं। बल्कि दुश्मन इनका नाम सुनकर खुद भाग जाए।आइए जानते हैं ऐसी कोनसी बात है जो इनकी ट्रेनिंग को बाकी फोर्सेज की ट्रेनिंग से अलग बनाती है।

आखिर कोन होते हैं पैरा कमांडों? कैसे बनें पैरा कमांडों?

कांच खाने वाला रिवाज़:-

पैरा कमांडों की ट्रेनिंग दुनिया की सबसे कठिन ट्रेनिंग में से एक तो है ही पर ध्यान केंद्रित करने और चौकाने वाली बात है इनके प्रशिक्षण के अंत में होने वाला रिवाज़। यह मैरून टोपी और बलिदान बैज लगाए हुए जवान इतने काबिल होते हैं की किसी भी परिस्थिति को बदलना जानते हैं। इनके लिए कुछ भी ऐसा नहीं होता जो नामुमकिन हो। १०० में से १०% लोग ही इस प्रशिक्षण को पार कर पाते हैं। यही कारण है की इनकी आहट से ही दुश्मन थर-थर कांप उठता है।

जब एक युवा पैरा (एस एफ) का प्रशिक्षण पूर्ण कर लेता है तो वह पैरा कमांडों के पद के लिए योग्य माना जाता है। प्रशिक्षण पूर्ण होने पर योग्य युवाओं के लिए एक पार्टी आयोजित की जाती है जिसमें उनको शीशे के ग्लास में पटियाला पेग पीने को दिया जाता है जिसको पीकर खतम करना होता है। यूं तो पेग खतम करना बहुत ही आम बात है परंतु यदि शब्दों पर गौर करा जाए तो एक पैरा (एस एफ) कमांडों को ग्लास में पड़ी रम या वाइन के साथ- साथ उस शीशे के गिलास को भी खतम करना होता है। जी हां सही सुना आपने, शीशे के ग्लास को भी खतम करना होता है जो एक रसम के तौर पर निभाया जाता है। यह रसम पूरी करने के बाद ही युवा सही मायनों में पैरा एस एफ कमांडों माना जाता है।

यह रसम कुछ इस प्रकार करी जाती है:-

सबसे पहले वाइन को आखिरी बूंद तक पीना होता है । और इसके बाद दात से ग्लास के कोने को तोड़कर उसको अच्छे से चबाया जाता है जब तक वह पाउडर न बन जाए। क्योंकि शीशा रेत से बनता है इसलिए उसको अच्छे से चबाने के बाद पाउडर बन जाने के बाद अगर निगला जाए तो वह आंतरिक शरीर को कोई नुकसान नहीं पहुंचता या यूं कहें की वह इतना दर्दनीय नहीं होता की एक पैरा कमांडो न सह पाए। परंतु ये एक आम इंसान के लिए करना बहुत ही कठिन और जानलेवा हो सकता है। ये रसम सिर्फ पैरा कमांडों ही पूरी कर सकते हैं क्योंकि उनका प्रशिक्षण इससे भी कहीं ज्यादा कठिन रस्मों और स्थितियों से होकर गुजरता है। यह रसम उनको दुनियाभर के अन्य कमांडोज से अलग तो बनाती ही है बल्कि उनकी मजबूती को भी दर्शाती है। इस रसम के चलते पैरा कमांडोज को ग्लास ईटर्स भी कहा जाता है।

तो यह थी पैरा (एस एफ) कमांडों की ग्लास खाने वाली रसम जो एक आम आदमी द्वारा घर पर बिना सुरक्षा के या किसी प्रोफेशनल की निगरानी में किए जाने पर जानलेवा साबित हो सकती है। ऐसे ही नहीं पैरा एस एफ दुनिया के सबसे अलग एवम मजबूत सैनिक में से एक हैं। उनकी हिम्मत और ताकत उनको अलग बनाती है।

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