संकट चौथ पर तिल की पूजा क्यों की जाती है?

हिन्दू कैलेंडर के मुताबिक, प्रत्येक माह में दो बार चतुर्थी मनाई जाती है। जिनमें से माघ मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली संकष्टी चतुर्थी काफी महत्वपूर्ण मानी गई है। हिन्दू धर्म में इस चतुर्थी को संकट चौथ, तिल चौथ और माघी चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन मुख्य रूप से भगवान गणेश की पूजा की जाती है और भारतीय स्त्रियां अपनी संतान की दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं। साथ ही संकट वाले दिन तिल से बनी हुई चीज़ों का भोग लगाया जाता है। ऐसे में चलिए जानते है कि हिन्दू धर्म में संकट चौथ पर तिल से बकरा बनाकर उसकी पूजा क्यों की जाती है?
संकट पर तिलकूट का महत्व
उत्तर भारत में संकट चौथ पर तिलकूट से बकरा बनाकर उसकी पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, संकट के दिन तिलकूट से बने बकरे की गर्दन को घर के पुरुषों द्वारा चाकू से काटा जाता है। माना जाता है इससे घर के भाई बंधुओं में आपसी एकता और सहयोग की भावना का विकास होता है। दूसरी ओर भारतीय महिलाएं अपनी संतान मुख्य रूप से पुत्र की सुख समृद्धि के लिए संकट के दिन निर्जला व्रत रखती हैं।
जाड़ों के समय में जब संकष्टी चतुर्थी का त्योहार आता है तब तिल और इससे निर्मित खाद्य पदार्थों का सेवन करने से स्वास्थ्य को लाभ पहुंचता है। ऐसे में संकट का व्रत खोलने के पश्चात् भगवान गणेश को तिल से बने लड्डुओं का भोग लगाया जाता है। उत्तर भारत के कई स्थानों पर तिल से बने लड्डुओं के भोग को एक रात पहले टोकरी में बांधकर रख दिया जाता है जिसे अगले दिन घर के पुरुषों द्वारा ही खोला जाता है। इस दिन तिल के साथ गुड़, गन्ने आदि का दान किया जाता है। साथ ही उपयुक्त चीज़ों की पूजा भी की जाती है और चन्द्र देवता को पानी में तिल डालकर अघ्र्य देने के बाद संकट का त्योहार सम्पूर्ण किया जाता है। कहते है भारतीय स्त्रियां अपने बच्चों को बुरी नजर से बचाने और गंभीर रोग से रक्षा करने के लिए संकट का व्रत विधि विधान से धारण करती हैं।
संकट की पूजा
इस साल 31 जनवरी को संकष्टी चतुर्थी मनाई जाएगी। जिस पर चलिए आपको बताते है कि संकट त्योहार की पूजा कैसे की जाती है…..
संकट वाले दिन सुबह स्नान करने के बाद भगवान गणेश की मूर्ति को एक साफ लाल या पीले रंग का कपड़ा चौकी पर बिछाकर उन्हें स्थापित किया जाता है। महिलाएं इस दिन निर्जला व्रत रखती है और शाम को संकट की कथा सुनने के बाद व्रत खोलती हैं। फिर मुहूर्त के अनुसार तिल और गुड़ का बकरा बनाकर उसकी बलि चढ़ाई जाती है। भगवान गणेश की पूजा करते समय तिल के लड्डू, पान, सुपारी, जल, अक्षत और धूप इत्यादि चढ़ाया जाता है और ॐ गणेशाय नमः का जाप किया जाता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, संकट चौथ के दिन व्यक्ति को मूली, प्याज, चुकंदर और गाजर इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए। अन्यथा व्यक्ति को आर्थिक संकट झेलना पड़ता है। इसके अलावा संकट चौथ के दिन गणेश जी को तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए। भारतीय महिलाओं द्वारा गणेश जी की स्तुति करते समय दुर्वा का प्रयोग करना चाहिए। इससे व्यक्ति को स्वास्थ्य लाभ पहुंचता है।
संकट की कथा
हिन्दू धर्म में वर्णित धार्मिक कहानी के मुताबिक, एक बार एक गांव में कुम्हार रहता था। जोकि बर्तन बनाने का काम करता था। एक दिन उसने बर्तन बनाने के लिए भट्टी बनाई जो किसी कारणवश पक ना सकी। जिसके चलते वह अपनी दुविधा को राजा के महल में लेकर पहुंचा। जहां राजा ने एक पंडित को बुलाकर इसका कारण पूछा तो पंडित ने राजा से कहा कि बर्तन बनाने के लिए आंवा तभी पकेगा जब उससे पहले एक बच्चे की बलि दी जाएगी। जिसके बाद राजा की आज्ञा पाकर गांव के बच्चों की बारी बारी से बलि दी जाने लगी। फिर एक बार एक बूढ़ी औरत के बच्चे की बारी आई। वह बूढ़ी औरत काफी परेशान हो गई क्योंकि उसका बेटा ही उसके जीने की वजह था। जिस पर उस बूढ़ी औरत ने एक तरकीब खोजी। उसने अपने बेटे को संकट की सुपाड़ी और दूब का बीड़ा दिया और कहा कि तू भगवान का नाम लेकर भट्टी में बैठ जाना। संकट मैया अब मेरे बेटे की जिंदगी तेरे हाथों में है। ऐसे में जब उस बूढ़ी औरत का बेटा आंवा में बैठा तो अगली सुबह का नज़ारा देखकर सब लोग दंग रह गए। जिस आंवा को पकने में कई दिन लग जाते थे वह एक रात में ही पककर तैयार हो गया था। दूसरी ओर बूढ़ी अम्मा का बेटा भी संकट माता के आशीर्वाद से जीवित बच गया था। तभी से संकष्टी चतुर्थी का त्योहार मनाया जाता है।
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