जानते हैं मैरी बोनापार्ट को जिन्होंने महिलाओं में चरमसुख पर रीसर्च की

जानते हैं मैरी बोनापार्ट को जिन्होंने महिलाओं में चरमसुख पर रीसर्च की

हम लोगों में से बहुत लोग जानते भी होंगे और बहुत लोग नहीं भी जानते होंगे कि मैरी बोनापार्ट कौन है। लोगों के अनुसार बताया जाता है कि मैरी बोनापार्ट फ्रांस के पूर्व सम्राट नेपोलियन प्रथम की भतीजी और ड्यूक ऑफ़ एडिनबरा प्रिंस फ़िलिप की चाची मैरी बोनापार्ट (mary bonaparte)  थी।

मैरी बोनापार्ट एक राजकुमारी थी। कहा जाता है कि मैरी बोनापार्ट की  दिलचस्पी सेक्स के दौरान महिलाओं में चरमसुख और उनके मानसिक स्थिति का विश्लेषण बहुत अच्छे से करती थी। इसीलिए मैरी बोनापार्ट एक अच्छी छात्र बनी और जब जरूरत पड़ी तो मैरी  बोनापार्ट ने सिग्मंड फ्रॉयड को भी बचाई थी।लेकिन मैरी बोनापार्ट के बारे में ये भी कहा जाता है कि सबसे पहले तो वो एक आजाद ख्यालों की महिला थी। वो जो भी अपने मन से सोचती थी। वो वही करती भी थी।

चलिए जानते हैं मैरी बोनापार्ट (mary bonaparte in Hindi) के जीवन के कुछ रोचक तथ्यों के बारे में


मैरी बोनापार्ट का नाम हम सभी ने कभी ना कभी जरूर सुना होगा मेरी बोनापार्ट का जन्म एक जाने-माने धनी परिवार में हुआ था।मैरी बोनापार्ट मैरी-फ़ेलिक्स और फ्रांस के राजकुमार रोलैंड नेपोलियन बोनापार्ट की बहुत प्यारी बेटी थी। मैरी बोनापार्ट के दादा जी फ्रांस्वा ब्लांक के  एक जानेमाने व्यवसायी थे और कसीनो मॉन्टे कार्लो के संस्थापक भी थे। उनके लिए उनकी पोती मैरी बोनापार्ट भगवान का दिया हुआ अनमोल तोहफा थी। लेकिन कहा जाता है कि मैरी बोनापार्ट का जीवन बहुत ही दुख भरी थी। जब मैरी बोनापार्ट जन्म ली तो उस समय वह मरते मरते बच्ची जब मैरी बोनापार्ट 1 मंथ की हुई तो उनकी मां उनको छोड़कर इस दुनिया से चली गई। तब से मैरी बोनापार्ट का जीवन बिना मां भाई-बहन दोस्त इन सब के बिना गुजर रहा था। मैरी बोनापार्ट के लिए  पिता का ही सहारा बचा हुआ था जो वो अपने पिता के सहारे समय बिताती थी। उनके दादा भी उन्हें बहुत प्यार करते थे लेकिन वो अपनी दादी से बहुत ज्यादा डरती थी।

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मैरी बोनापार्ट हमेशा अपने पिता के साथ रहती थी और अपने पिता से छोटी उम्र से ही वो विज्ञान, साहित्य और लेखन के साथ-साथ अपने शरीर से जुड़े हमेशा बहुत सारे सवाल पूछती रहती थी। मैरी बोनापार्ट के पिता उनका ध्यान रखने के लिए घर में ही एक महिला को रखते थे लेकिन एक दिन अचानक एक ‘मिमउ’ ने उन्हें हस्तमैथुन करते हुए देख ली थी।बताया जा रहा है कि 1952 में मैरी बोनापार्ट ने ख़ुद अपनी डायरी में इस घटना के बारे में लिखी थी। 

अपने लेख द थ्योरी ऑफ़ फ़ीमेल सेक्शुआलिटी ऑफ़ मैरी बोनापार्ट फ़ैन्टसी एंड बायोलॉजी में नेली थॉम्पसन लिखती हैं।अपनी डायरी में बोनापार्ट ने दावा किया है कि आठ या नौ साल की उम्र में उन्होंने ख़ुद से हस्तमैथुन करना छोड़ दिया क्योंकि उन्हें मिमउ की चेतावनी के बाद डर लगा कि कामुकता में आनंद खोजने से उनकी मौत हो जाएगी।

कम उम्र से ही विद्रोह के बीज मैरी में पड़ चुके थे और वो इस बात को मानने को तैयार नहीं थीं कि महिलाओं को किसी की अधीनता स्वीकार करनी चाहिए.

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मैरी बोनापार्ट ने बहुत कम उम्र में ही अंग्रेज़ी और जर्मन भाषा की पढ़ाई शुरू की थी। लेकिन उनकी दादी और उनके पिता ने अचानक से किसी बात को लेकर मैरी बोनापार्ट से नाराज हो गए और उन्हें आगे की परीक्षा देने के लिए रोक दिया। 

बताया जा रहा है कि थॉम्पसन के अनुसार मैरी बोनापार्ट ने इस बात के लिए खुद को जिम्मेदार मानने लगी और उसके बाद उन्होंने लिखा की, “मेरा नाम, मेरा रैंक, मेरा भाग्य! ख़ास तौर पर मेरे सेक्स पर धिक्कार है! क्योंकि अगर मैं लड़का होती, तो मेरी दादी और मेरे पापा  मुझे इस चीज के लिए कभी भी नहीं रोकती।

बताया जा रहा है कि  उस जमाने में महिला और पुरुष को जेंडर के आधार पर नहीं देखा जाता था बल्कि सेक्स के आधार पर देखा जाता था। जब मैरी   20 साल की हो गई तो सेक्स को लेकर उसका कुछ अलग ही अंदाज था उस वक्त मेरी का अफेयर उनके पिता के सहायक के साथ चल रहा था जो कि पहले से शादीशुदा थे और उनके 1 बच्चे भी थे। जब इस बात का पता मेरी के पिता को लगा तो उन्होंने अपनी बेटी को ग्रीस और डेनमार्क के राजकुमार प्रिंस जॉर्ज (1869 से 1957) से मुलाकात करवा दिया।मैरी के पिता  अपनी बेटी मैरी का शादी 13 साल बड़े लङके से मैरी की खुशी से 12 दिसंबर 1907 में एथेन्स में दोनों की शादी कर दी गई।

उसके बाद मेरी के दो बेटे हुए  यूजीन और प्रिंस पीटर, लेकिन मेरी कि घर गृहस्ती अच्छी तरीके से नहीं चल रहा था जब मेरी की शादी के  पचास साल चला तो उसके बाद मैरी को जल्दी पता चल गया था कि भावनात्मक तौर पर उनके पति उनसे नहीं बल्कि अपने चाचा डेनमार्क के राजकुमार प्रिंस व्लादिमीर से जुड़े हैं।

 उसके बाद मैरी अपने प्रेम को ख़ुद तलाशने को लेकर खुद ही सारे फैसले करना शुरू कर दी थी।मैरी को डर था कि उनका जीवन हमेशा के लिए उदासी में ना बीते ऐसे में मैरी ने अपने जीवन की सारी परेशानियों को हल करने का रास्ता पढ़ाई से तलाशना शुरू कर दी।

मैरी बोनापार्ट  हमेशा से यही मानती थी कि किसी व्यक्ति के साथ जब महिला सेक्स करती है तो महिला को चरमसुख कभी नहीं मिल पाता है। यह एक महिला और पुरुष की शारीरिक समस्याएं हो सकती है। 

उसके बाद मेरी बोनापार्ट ने इस चीज को समझने के लिए एक थ्योरी बनाई- महिला के वजाइना और क्लिटोरिस के बीच दूरी जितनी कम होगी सेक्स के दौरान चरमसुख पाने की उसकी उत्तेजना  बहुत ज्यादा होगी।

मैरी बोनापार्ट अपने इस थीसिस पर काम करने के लिए  मैरी बोनापार्ट ने 1920 के पेरिस में 240 महिलाओं के वजाइना और क्लिटोरिस के बीच की दूरी को नाप लीया।

मैरी बोनापार्ट की सिग्मंड फ्रॉयड से गहरी दोस्ती


इतना कुछ होने के बाद ही मैरी बोनापार्ट ने कभी भी हार नहीं मानी उन्होंने यौन कुंठाओं और सेक्स में परेशानी से जुड़े अपने सवालों के उत्तर खोजना जारी रखी।उसके बाद  मैरी बोनापार्ट ने साल 1925 में वो एक चर्चित मनोविश्लेषक से मुलाक़ात करने के लिए विएना गईं, जिनकी पेरिस के मेडिकल सर्कल में काफ़ी चर्चा की थी। वही थी मैरी बोनापार्ट के सिग्मंड फ्रॉयड।

कुछ दिनों के बाद मैरी बोनापार्ट उनकी मरीज़ बन गईं लेकिन जल्द ही मनोविश्लेषण में मैरी की दिलचस्पी भी बढ़ने लगी और दोनों के बीच में गहरी दोस्ती हो गई धीरे धीरे मैरी बोनापार्ट उनकी अच्छी  विद्यार्थी बन गए।

वो कहते हैं, “फ्रायड को भी उनके साथ वक़्त बिताना अच्छा लगता था क्योंकि न तो वो ‘ख़तरनाक महिला’ थीं और न ही कोई अकादमिक. जब दोनों की मुलाक़ात हुई थी तब फ्रायड सत्तर साल के थे और मैरी एक दिलचस्प, बुद्धिमान और धनी घर की महिला थीं जो उनके साथ बहस कर सकती थीं।

उसके बाद मैरी बोनापार्ट ने मनोविश्लेषण के क्षेत्र में पेरिस में मैरी बोनापार्ट एक जाने-माने नाम से प्रसिद्ध हो गई।. यहां तक ​​कि राजकुमारी के रूप में वो अपनी आधिकारिक डायरी में अपने साथ-साथ अपने सभी मरीजों के बारे में भी लिखने लगी थी। 

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लेकिन नसीब ने पलटी खायी और जब ऑस्ट्रिया पर जर्मन नाज़ियों ने हमला किया तो उन्होंने फ्रॉयड का जीवन बचाया।

उसके बाद मेरी  बोनापार्ट नहीं बहुत भलाई का काम भी किया उन्होंने अपने पैसे और का इस्तेमाल करते हुए मैरी ने फ्रायड और उनके परिवार को विएना से निकाल कर लंदन  तक पहुंचाया, जहां उन्होंने अपने जीवन के आख़िरी साल बिताए।

सूत्रों के अनुसार बताया जा रहा है कि 1938 में बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में सिग्मंड फ्रायड ने बीबीसी को बताया था कि “जब में 82 साल का था मैंने विएना में मौजूद अपना घर छोड़ दिया। उस वक़्त वहां जर्मनी ने हमला किया था। मैं वहां से इंग्लैंड आ गया और उम्मीद कर रहा हूं कि यहां की आज़ाद फ़िज़ा में अपनी आख़िरी सांस लूंगा।

प्रोफ़ेसर वॉलेन  ने कहा कि मैरी बोनापार्ट ने अपने सिद्धातों को पूरी तरह ख़ारिज कर दि थी


प्रोफ़ेसर  वॉलेन ने कहा कि 1950 में एक किताब  छापी गई थी। जिस किताब का नाम फ़ीमेल सेक्शुआलिटी  था। इस किताब में मैरी बोनापार्ट ने अपने ही अध्ययन के सिद्धांतों को पूरी तरह ख़ारिज कर दि थी।

प्रोफ़ेसर  वॉलेन ने कहा कि इस किताब मे  मैरी बोनापार्ट ने सेक्स में महिलाओं के चरमसुख पाने का कोई नाता उनके शरीर की संरचना से नहीं होता है  उन्होंने कहा की सेक्स का नाता पूरी तरीक़े से मनोवैज्ञानिक होता है। मैरी बोनापार्ट ने ये बात इसीलिए बोली क्योंकि वो 25 साल की उम्र से ही से मनोविश्लेषण का काम कर रही थीं।

प्रोफ़ेसर वॉलेन का कहना था कि  मैरी बोनापार्ट एक महिला ही नहीं बल्कि वह एक क्रांतिकारी महिला थीं। प्रोफ़ेसर वॉलेन ने कहा मैरी बोनापार्ट बाद में अपना मन बदल लिया। लेकिन प्रोफ़ेसर  वॉलेन ने कहा कि मैं फिर भी मैं मानता हूं कि उनका वास्तविक शोध अपने आप में बहुत ज्यादा उल्लेखनीय रहा है।

बताया जा रहा है कि प्रोफ़ेसर डॉक्टर लॉयड का कहना था कि मैरी बोनापार्ट  बहुत सुंदर महिला थी लेकिन मैरी बोनापार्ट का जीवन बहुत ज्यादा दुखो से भरा हुआ था। प्रोफ़ेसर डॉ.लॉयड ने कहा कि मैरी बोनापार्ट मेरे लिए किसी हीरोइन से कम नहीं थी।

मैरी बोनापार्ट हमेशा से यही कहती थी कि वो अपने शरीर से कभी भी खुश नहीं है।मैरी बोनापार्ट कहती थी की वो अपने  महिला सेक्शुआलिटी के मामले में अपने समय से बहुत आगे निकल गई है।

प्रोफ़ेसर रेमी अमोरौक्स ने कई सालों तक पेरिस में मैरी बोनापार्ट के काम का अध्ययन किया है वो कहते हैं।की वो एक अद्भुत महिला थीं। मैरी बोनापार्ट  साहित्य के बारे में बहुत अच्छी तरीके से जानती थीं और राजनीति के बारे में भीवो शाही गलियारे में भी लोगों से बहुत अच्छे संपर्क रखती थीं। 20वीं सदी के पहले हिस्से से सभी जानेमाने लोगों को जानती थीं।

वो हमेशा से ही कहते थे की फ़ेमिनिस्ट मूवमेन्ट का भी एक अपना  मुख्य चेहरा था ।

अमोरौक्स का कहना था कि मैरी बोनापार्ट आखिर में  वो इस फैसले पर पहुंची जहां पर महिलाओं में कामुकता को देखने का उनका तरीक़ा पितृसत्तात्मक था। क्योंकि मैरी बोनापार्ट यही समझती रहती थी कि चरमसुख हासिल करने का एक ही तरीका होता है।

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